Tuesday, August 25, 2009

झंडे-डंडे के बहाने





सांसद नवीन जिंदल के तिरंगेे को आम जनता के घरों पर फहराने के हक की जीत के बाद लोगों में राष्टï्रभावना बढ़ी है। अब तिरंगा घरों में भी लहराने को देखने को मिल रहा है। हालांकि अब इन्हीं नवीन जिंदल पर राष्टï्रध्वज के अपमान का अरोप लगना शुरू हो गया। उनके विज्ञापनों को लेकर कुछ संगठनों ने नाराजगी व्यक्त की, विरोध-प्रदर्शन किया।
अस्तु, महासमुंंद जिले के बसना ब्लॉक के बंसूला डीपा निवासी श्रीराम साहू अकेला गत दो सालों से हर पंद्रह अगस्त और 26 जनवरी को अपने अभिराम सदन में तिरंगा फहराते आ रहे हैं। पहले खुद तिरंगा फहराते थे पत्नी-बच्चों के साथ, उसके बाद स्कूल के लिए निकल पड़ते थे। इस बार उन्होंने अपने मित्र बद्रीप्रसाद पुरोहित के हाथों तिरंगा फहराया। ये वही बद्रीप्रसाद हैं जो पेशे से शिक्षक हैं, जिनकी कविता ने बसना में भूचाल ला दिया। उनकी स्कूल से खिंचकर पिटाई की गई, और उन्हें बहुत कुछ झेलना पड़ा। ये शिक्षक कवि वही हैं जिन्हें कभी कलेक्टर ने ईमानदारी का तमगा दिया था, अपनी बिरादरी में अपनी इस ईमानदारी के कारण न जाने कितनी बातें सुननी और झेलनी पड़ी थीं।
बहरहाल यह औरों को छोटी सी बात लगे पर जब देश के हर शहर, गांव, मुहल्ला, चौक-चौराहों पर अपने-अपने झंडों का कब्जाने का दौर शुरू हो गया है, यह अकेला प्रयास एक नई उम्मीद की किरण दिखाई देती है। अपने घर से ही शुरूवात करें, कि इस तिरंगे के आगे दूसरा रंग ऊपर नहीं हो सकता।


कुछ दिनों पहले मुझे बसना जाने का मौका मिला। यहां से गुजरते बसना के मुख्य चौक पर लगे लैंप पोस्ट पर झंडों के एक-दूसरे से आगे बढ़कर फहरने का होड़ दिखाई दिया। शायद, झंडे के डंडा का कद उतना जितना उस रंग के अनुयायी। खैर---लैंप पोस्ट से आगे निकलकर फहराने की जिद सबकी, पर डंडा तो आखिर किसी न किसी का छोटा होगा। बाकी उसे सलामी देते तो नजर आएंगे ही। इस चौराहे पर सबसे आगे निकलकर फहरने की होड़ हर रंग की थी पर चौराहे पर ही क्यों? मैंने पहली बार कई घरों के आगे खास रंग के झंडे फहरे देखे।
उधर लैंपपोस्ट पर जब एक खास रंग ने इन सबसे आगे फहरने की इच्छा जताई तो रंग न पहचान पाने के दृष्टिïदोष वाले स्थानीय प्रशासन ने तमाम रंगों वाले इन झंडों-डंडों को निकाला। आखिर उनकी नजर में सब एक ही तो हैं? चलो इसी बहाने कुछ अच्छा तो हुआ। श्रीरामजी का कहना है कि जब मंत्रियों, अफसरों, कारखानों, स्कूलों में तिरंगा फहराए जाने की खबरें छपती हैं तो क्यों उनके घर में फहरे इस झंडे को जगह नहीं मिलनी चाहिए? कम से कम उनका यह तिरंगा भी तो अखबारों के समाचारों में दो-चार लाइन पाने का हकदार है। शायद उनके तिरंगे में डंडा नहीं है, एक सांटी (छड़ी)के भरोसे है जो प्यार की हवा का हल्का सा झोंका पाकर विनम्रता से झुक जाता है, और लोग इसे डरकर झुक जाना कहते हैं।
श्रीरामजी की पीड़ा यह भी थी कि घर उनका, पर रंग जब उन्होंने अपनी पसंद का पुतवाया तो पड़ोसी समेत आसपास के लोग कहने लगे अरे यह तो फलां मजहब का रंग है और तुम तो...। तुमने यह रंग क्यों पुतवाया। कुछ जगह फुसफुसाहटें भी होतीं, जैसा कि आम भारतीय में देखने को मिलता है। पत्नी, बच्चे भी बातें सुनते तो वे मुझे ऐसे देखते जैसे मैं मुजरिम हूं। तब फैसला किया कि क्यों न तिरंगा का रंग पूरे घर को सराबोर करे।
अब लोग इस रंग पर क्या कहते हैं -मेरे सवाल पर कहते हैं कि अब मैं सबको राष्टï्रवादी दिखता हूं। कविता-कहानी लिखता हूं तो अब राष्टï्रवादी रचनाकार हो गया हूं। पेशे से शिक्षक हूं इसलिए देश भक्त गुरूजी बन गया हूं।
अब बात आकर अभिराम पर ठहर गई? यह नाम भी तो किसी खास रंगवालों का है तो उनका जवाब था- श्री राम और भाई साहब अभि का नाम मिलकर अभिराम है। नाम तो मेरा माता-पिता का दिया है, जिस पर मेरा बस नहीं था।वैसे झंडे-डंडे के इस दौर में थोड़ी सी सावधानी भी जरूरी है। जिस तेजी से नेता झंडे-डंडे बदल रहे हैं, जिस तरह से तेजी से डंडे बदल रहे हैंकब किस रंग की ओर है समझ में नहीं आता। जसवंत के झंडे से जिस तेजी से डंडा निकाला गया, बेचारे अब कहीं के नहीं रह गए हैं। शायद अब वे बेझंडों-बेडंडों वाले साथियों से मिलकर कुछ नई जुगत लगाएं। यह तो आने वाला समय बताएगा। पर इसी बहाने चलो झंडे और डंडे पर दो चार बातें हो गईं।

एड्स: खौफनाक तस्वीरें






एड्स ने जिस तरह से भारत में पांव फैलाना शुरू किया उससे एक बेदह खौेफनाक तस्वीर सामने आने लगी है। भारत जैसे बहुसंस्कृति व परंपरा वाले इस देश में इस बीमारी के कारण जो घटनाएं सामने आ रही हैं दिल को दहला देने वाली हैं। भारत मेंअशिक्षा और अंधविश्वास के कारण इस बीमारी से पीडि़त खासकर महिलाओं को हर स्तर पर झेलनी पड़ रही है। पुरूष प्रधान बारतीय समाज में आखिर वे ही दोषी ठहरा दी जाती हैं। भले ही भीमारी किसी और ने दिया हो। निजी जीवन तो मानो नर्क ही बन गया, तिल-तिल जीने को विवश, पर पढ़े लिखे डॉक्टर भी उनके साथ जो कुछ कर रहे हैं मानव की खत्म हो रही संवेदनशीलता की ओर इशारा करती हैं। देश-विदेश की कुछ घटनाओं पर आप नजर डालें, और सोचें क्यों ऐसा हो रहा है, कब तक होता रहेगा। क्या कहता है कोर्ट।

माथे पर एचआईवी पॉजिटिव लिख महिला की कराई परेड
गुजरात के जामनगर के सरकारी अस्पताल में एक प्रेग्नेंट महिला के माथे पर एचआईवी पॉजिटिव लिखकर परेड कराने का मामला सामने आया था। पीडि़ता का आरोप है कि डॉक्टरों ने उसका इलाज करने से भी मना कर दिया। जब इस घटना के खिलाफ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने गुरु गोविंद सिंह गवर्नमेंट हॉस्पिटल के सामने प्रदर्शन किया तो राज्य का स्वास्थ्य महकमा हरकत में आया। पीडि़ता के मुताबिक, घटना तब की है जब रुटीन चेकअप के लिए मेरा ब्लड टेस्ट किया गया। जब रिपोर्ट आई तो डॉक्टरों और स्टाफ के लोगों ने मेरे माथे पर एचआईवी पॉजिटिव का स्टिकर चिपकाकर अस्पताल में मेरी परेड कराई। डॉक्टरों ने मेरा इलाज करने तक से मना कर दिया।

इंदौर पुलिस को एड्स गर्ल की



तलाश इंदौर पुलिस इन दिनों एक ऐसी रहस्यमयी लड़की की तलाश में जुटी है जो कथित तौर पर एड्स से पीडि़त है, और नौजवानों के साथ शारीरिक संबंध बनाकर उन्हें इस खतरनाक बीमारी का शिकार बना रही है। एड्स गर्ल के रूप में दिनों दिन कुख्यात हो रही इस लड़की की पहचान के बारे में हालांकि पुलिस के पास पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन लड़की के जाल में फंसे नौजवानों के बताए हुलिये के आधार पर उसका स्केच जारी कर दिया गया है। शहर के एसपी ने बताया कि हमें मीडिया के कुछ लोगों से मालूम पड़ा है कि शहर में एक एड्स पीडि़त लड़की रात के वक्त अनजान नौजवानों को सेक्स के लिए आमंत्रित करती है। यह लड़की नौजवानों को भी इस बीमारी का शिकार बनाने की कोशिश कर रही है। कई नौजवान इस लड़की का शिकार बन चुके हैं। गौरतलब है कि विदेशों में इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। कुछ वक्त पहले एक अनजान युवक ने यू ट्यूब पर एक विडियो के ज़रिए दावा किया था कि उसने 1500 से ज़्यादा लड़कियों के शरीर में एड्स का वायरस पहुंचा दिया है। इस विडियो में वह कुछ लड़कियों के नाम और उम्र पढ़ता भी नजऱ आया था। यह विडियो ज़बर्दस्त हिट रहा था।
एड्स पीडि़त छात्र को स्कूल से निकाला इलाहाबाद जिले के एक प्राथमिक विद्यालय में पढऩे वाले नौ साल के छात्र को प्रधानाचार्य ने यह कहकर विद्यालय परिसर से निकाल दिया कि वह एड्स पीडि़त है।जिले के जसरा इलाके में रहने वाले कक्षा चार के छात्र के साथ इस प्रताडऩा को शिक्षा विभाग ने गंभीरता से लेते हुए आरोपी प्रधानाचार्य के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। जिले के शिक्षा अधिकारी बृजेश मिश्रा ने बताया कि विभाग को पता चला कि जसरा क्षेत्र में बेलमोंडा प्राथमिक विद्यालय में शनिवार को प्रधानाचार्य ने एक छात्र को एड्स पीडि़त होने के कारण विद्यालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया। मिश्रा ने कहा कि हमें अभी यह पता नहीं चल पाया है कि प्रधानाचार्य को छात्र के एड्स पीडि़त होने की जानकारी कैसे हुई। घटना की जांच के आदेश दिये गये हैं।अधिकारियों के मुताबिक छात्र के माता-पिता सोरांव इलाके में रहते थे, उनकी एड्स की वजह से मौत हो गई थी। माता-पिता की मौत के बाद छात्र के मामा ने उसे अपने पास रख लिया और विद्यालय में उसका दाखिला करवाया।मिश्रा ने कहा कि वह आश्वस्त करते हैं कि विद्यालय प्रशासन की तरफ से छात्र को भविष्य में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा और आरोपी प्रधानाचार्य के खिलाफ जल्द ही सख्त कार्रवाई की जाएगी।

अफ्रीकी एड्स के इलाज के लिए करते हैं कुंवारियों से रेप



आज तक आपने अंधविश्वास के ढेरों किस्से सुने होंगे, लेकिन साउथ अफ्रीका में एड्स के रोगियों का मामला सबसे अलग है। यहां एचआईवी पॉजिटिव कई मरीजों का मानना है कि कमसिन वर्जिन लड़की के साथ सेक्स करने पर यह रोग ठीक हो जाता है। यह रोचक वाकया सुनाया है हॉलिवुड की मशहूर ऐक्ट्रिस शार्लीज़ थेरॉन ने। ऑस्कर अवॉर्ड जीत चुकीं थेरॉन यह देखकर काफी व्यथित थीं कि उनके देश के लोगों को इस बीमारी के बारे में सही जानकारी नहीं है। थेरॉन ने एड्स के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए सन् 1999 में केप टाउन में रेप क्राइसिसस सेंटर खोला था। उन्हें यह जानकर काफी धक्का लगा है कि 10 साल बाद भी लोग इस बीमारी को लेकर तरह - तरह की भ्रांतियों के शिकार हैं। उन्होंने कहा कि वहां काफी लोग एड्स के शिकार हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता है कि वे इस रोग के शिकार कैसे बने। थेरॉन कहती हैं कि अभी भी बहुत सारे लोग मानते हैं कि वर्जिन और कम उम्र की लड़की के साथ सेक्स करने से एड्स ठीक हो सकता है। इसकी वजह से वे टीनएजर के साथ रेप करते हैं और इस रोग को और फैलाते हैं।
शादी से पहले एड्स की जानकारी छुपाना चीटिंग नहीं: कोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले के तहत शादी से पहले पत्नी को एचआईवी एड्स की जानकारी नहीं दे पाने को जायज ठहराते हुए कहा है कि यह चीटिंग की श्रेणी में नहीं आता है। सतारा की एक महिला द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि यदि आप एचआईवी पॉजि़टिव हैं, तो शादी से पहले इसकी जानकारी अपनी होने वाली पत्नी को देना नैतिक स्तर पर सही हो सकता है। लेकिन, यदि किन्हीं कारणों से आप इस मसले की जानकारी अपनी भावी पत्नी को नहीं दे पाते तो इसे चीटिंग नहीं कहा जा सकता।
एचआईवी और एड्स क्या है? ज्यादातर लोग एचआईवी और एड्स को एक ही बीमारी मान लेते हैं। एचआईवी का अर्थ ह्यूयूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस है। इसमें संक्रमण धीरे धीरे बढ़ता चला जाता है। इसकी वजह से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। आगे चल कर यह एड्स यानी की एक्वायर्ड इम्यून डिफिशिएंसी सिंड्रोम में तब्दील हो जाता है। शुरू में इस बीमारी के बारे में पता नहीं चलता। लेकिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण हर बीमारी होने लगती है। तब जांच में इस बीमारी के बारे में पता चलता है।
कैसे फैलता है?
0 असुरक्षित यौन संबंधों से 0 संक्रमित इंजेक्शन या सूई के इस्तेमाल से 0 संक्रमित रक्त के प्रयोग से 0 संक्रमित गर्भवती माता से उसके गर्भस्थ शिशु को 0 संक्रमित व्यक्ति द्वारा किए गए अंगदान से
नहीं फैलता
0 संक्रमित व्यक्ति से बात करने पर 0 उसके साथ खाना खाने पर 0 उसके द्वारा प्रयोग किए गए बर्तन का प्रयोग करने पर 0 उसके साथ सोने से 0 उसे छूने या चूमने से
बचाव कैसे करें?
0 शारीरिक संबंध बनाते समय कंडोम का प्रयोग करें
0 दुर्घटना का शिकार होने पर इस बात का ध्यान रखा जाए कि चढ़ाया जाने वाला खून संक्रमित न हो
0 किसी भी डिस्पेंसरी या अस्पताल में टीका लगाने समय नई सूई का इस्तेमाल करें
0 अपने जीवन साथी के प्रति वफादार रहें
0 मल्टीपल सेक्सुअल पार्टनर न बनाएं
0 समलैंगिक संबंध न बनाएं


Sunday, August 23, 2009

राहुल गांधी : स्पीड 40 किलोमीटर




क्या आप जानते हैं राहुल गांधी कितना तेज दौड़ते हैं। उनके पीछे भगने में सुरक्षाकर्मियों के कितने पसीने छूटते हैं, तो आपको बस एक नजर छत्तीसगढ़ राज्य के प्रमुख अखबारों में से एक नवभारत पर नजर डालनी होगी। सिटी नवभारत के पेज 3 पर- राहुल के देेखते ही देखते 40 किलोमीटर की स्पीड पकड़ लेने की खबर पड़ते दुख हुआ कि दूरदृष्टिï वाले संजयों (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया) की टीम आखिर क्या कर रही थी? इनकी टीआरपी तो कई गुना बढ़ जाती। बड़ा दुख होता है छत्तीसगढ़ के पुलिस वालों की बढ़ती तोंद देखकर, क्या राहुल भाई के पीछे ऐसे पुलिसवालों को सजा बतौर (लाइन अटैच)नहीं लगानी चाहिए। कुछ दिन जब लौटें तो उनके घरवाले/वाली, आदियों को उन्हें पहचानने में दिमाग दौड़ाने पड़ें।ट्रकों के पीछे अक्सर लिखा दिखता है- स्पीड 40 किमी प्रति घंटा। बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला। वजनदार ट्रकों की रौंद डालने वाली स्पीड के आगे कुछ कहना बेमानी होगी। क्योंकि लिखा कुछ और रहता है और दिखता कुछ और है।बहरहाल.. सुबह यह भी पता चला कि राहुल घर लौटे तो सड़क जाम से बचने के लिए मेट्रो ट्रेन का सहारा लिया। दुख हुआ कि 40 किलोमीटर प्रतिघंटे और वह भी 45 मिनट तक की दौड़ लगा लेने वाले राहुल भाई ने आखिर दौड़ क्यों नहीं लगाई। कितना मजा आता जब दिल्ली वाले भी जान पाते कि राहुल जी की दौड़ कितनी तेज है। माला पहनाने की होड़ में हमेशा कांग्रेसी ही बदहवास दिखते हैं लेकिन पता नहीं संक्रामक नहीं होने वाला यह रोग इस रिपोर्टर / पत्रकार बंधु को कैसे लग गया।

Wednesday, August 19, 2009

निरोध, कंडोम, फ्लेवर और खूबसूरती


यौन संबंध के प्रति धीरे-धीरे जागरूकता बढऩे लगी है। माला डी हो या अनवांडेट पिल या फिर अन्य कोई गर्भनिरोधक साधन। पहले गर्भनिरोधक साधनों में निरोध नाम एक रूढ़ सा हो गया था यह शब्द अब कंडोम से गुजरात हुआ फ्लेवर के नाम से जाना जाने लगा है। एक सहकर्मी के मुंह से फ्लेवर सुनकर जिज्ञासा बढ़ी तो मैंने पूछा। इनका जवाब था 7 फ्लेवर में मिलता है कंडोम अमुक कंपनी का। जैसे माणिकचंद गुटखा की तर्ज पर अब पान फ्लेवर देना कह देने मात्र से दुकानदार समझ जाता है। आप निरोध या कंडोम कहकर दुकानदार से मांग कर देखें आसपास वाले एक बार घुरकर जरूर देखेंगे, मानों आप कोई अपराध करने जा रहे हों। भई इसके लिए इस रास्ते से बेहतर क्या हो सकता है। हां जरूरतें अपना रास्ता खुद निकाल लेती हैं। कुछ दिनों पहले छत्तीसगढ़ के कई जगहों पर धान के खेतों में कटुआ कीड़े का प्रकोप फैला तो किसानों ने निरमा वाशिंग पाउडर (कपड़े धोने का पाउडर) को कीटनाशक की तरह इस्तमाल किया। उनका यह ईजाद सस्ता और कारगर था। सभी ने हाथों हाथ लिया ,किसी ने भी यह जानने की कोई कोशिश नहीं की कि क्या इससे कोई नुकसान हो सकता है। अलबत्ता पौधों का मामला था तिस पर कहीं से कुछ साइड इफेक्ट की खबर भी नहीं आई और न जाने कितने किलो पाउडर खेतों में धुल गया। इसी तरह एक खास किस्म के कीड़ों के लिए जला हुआ तेल खासकर डीजल पंप से निकला तेल उपयोग किया जाता रहा है। पंजाब में पौधों की बाढ़ के लिए देशी शराब का उपयोग करने की खबर सामने आई थी। खैर... बात हो रही है किसी चीज के वैकिल्पक कारगर उपयोग की। अभी अखबारों में खबर मिला कि कंडोम का व्यूटी पार्लरों में इस्तेमाल होने लगा है। महिलाएं एक सौंदर्य प्रसाधन की तरह इस्तेमाल करने लगी हैं। गर्म निरोधक के तौर पर इस्तेमाल होने वाले कंडोम का भला खूबसूरती के क्या रिश्ता है? यह सवाल सुन कर कोई भी अचरज में पड़ सकता है। भूटान की महिलाएं अपने चेहरे की खूबसूरती बढ़ाने और आंखों के नीचे के स्याह घेरे को मिटाने के लिए इन दिनों धड़ल्ले से कंडोम का इस्तेमाल कर रही हैं। यही नहीं, कपड़े बुनने के लिए धागों को नरम बनाने के लिए भी कंडोम का ही इस्तेमाल हो रहा है। दवाइयों के दुकानदार कहते हैं कि महिलाएं उनके पास कंडोम खरीदने आ रही हैं। वे कहती हैं कि इससे न केवल आँखों के नीचे के काले घेरे मिटते हैं, बल्कि गर्भवती महिलाओं के चेहरे के दाग भी हट जाते हैं।महिलाओं का कहना है कि कंडोम रूखी त्वचा को निखारने और झाइयों को दूर करने में काम आता है। महिला खरीददारों की संख्या में इजाफा हो रहा है। इसकी वजह उनका यह भरोसा है कि कंडोम कास्मेटिक के तौर पर भी फायदेमंद है।हालाकि डाक्टर इस विचार से सहमत नहीं हैं। उनके मुताबिक कंडोम से त्वचा के कोमल होने के दावों में कोई दम नहीं है। उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जो त्वचा में निखार लाए। कंडोम में उपयोग होने वाले लुब्रिकेंट सामान्य होते हैं। अगर उनका कास्मेटिक के तौर पर लाभ है तो उसे उसी तरह से बेचा जाना चाहिए। एकचकित्सक का कहना है कि शोध से पता चला है कि कंडोम लुब्रिकेंट में बेंजीन होता है, जो बहुत ज्यादा मात्रा में उपयोग करने पर हानिकारक साबित हो सकता है। महिलाओं के अलावा भूटान के बुनकर भी कंडोम का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। उनका दावा है कि यह धागों की सख्ती दूर करने में सहायक है। वह कंडोम को ठंड के दौरान उपयोग करता है। उस समय धागे बहुत सख्त हो जाते हैं और उनसे काम करना मुश्किल होता है।सरकारी बुनाई केंद्र की एक कर्मचारी कहती है कि मैं बाहर जाकर उसे खरीद नहीं सकती। मैं दवा विक्रेता को कैसे बताउँगी कि मुझे उसका क्या उपयोग करना है,कोई मेरा विश्वास नहीं करेगा। कंडोम के लुब्रिकेंट को लूम पर लगाया जाता है ताकि धागे उस पर आसानी से चल सकें।

Tuesday, August 18, 2009

पानी किस कीमत पर?

छत्तीसगढ़ में कुछ सालों से जिस तरह भूजल का दोहन तेजी से बढ़ रहा है आनेवाले समय में भयावह तस्वीर सामने आ सकती है। अभी देखें तो कुछ साल पहले वे ट्यूबवेल जो 5 इंच पानी की धार छोड़ रहे हैं अब नल की तरह कबी -कभार एक दो घंटे चल पा रहे हैं। किसानों ने जिस तरह इसके लिए कर्ज लेकर टूयबवेल खुदवाए वे उस हिसाब से उसकी लागत शायद ही निकाल पाएं हो। लागत के मुकाबले वे उतना उत्पादन नहीं कर पाए या फिर थोड़ा बहुत सहकर उस जगह पर खेती करना ही छोड़ दिया। इस तरह से खेती का रकबा भी घटने लगा है। कोढ़ पर खाज की स्थिति तब आने जा रही है जब सरकार ने यह घोषणा की है कि अब छोटे किसानों (5 एकड़ से कम) को मुफ्त में बिजली दी जाएगी। हालांकि सब किसान जानते हैं कि बिजली जिस हिसाब से गांवों तक पहुंचती है उससे पंप तो क्या एक लट्टïू भी ठीक तरह से जल नहीं पाता। महीनों लग जाते हैं एक खराब ट्रांसफार्मर सुधारने में वह भी बिजली विभाग के करम-चारियों की पूजा-पाठ, और दान-दक्षिणा के बाद। सरकार का दावा है कि बिजली की कोई कमी नहीं हैं प्रदेश में, पर हम देखते हैं कि उस अनुपात में बिजली की बर्बादी भी हो रही है। घर-घर में खुद रहे नलकूप। पानी की बर्बादी के साथ ही बिजली की बर्बादी भी करते हैं। किसानों को मुफ्त बिजली मिलेगी तो न जाने कितने ट्यबवेल और खुद जाएंगे, भले ही इसके लिए इस छोटे किसान को कर्ज लेना पड़े। इनमें से कुछ हो सकता है महाजनों से कर्ज लें और जो कुछ आंध्र प्रदेश में और पंजाब में देखने को मिला क्या यह किसी के लिए सबक नहीं बना है। किस कीमत पर किसान धान उपजाने लगा है इसकी ओर भी हमारे नीति तय करनेवालों को देखना होगा। आहिस्ता-आहिस्ता पट रहे डबरी-तालाब कुएं। आदिवासी बहुल वनांचल कोरिया जिले की एक रिपोर्ट जो सब कुछ बता देती है कि अफरशााही और अदूरदर्शिता का नाता-गोता कितना रहता है। एक सुई के लिए कार से सफर तय किया जाता है। भई जब बांध बनाने का फैसला लिया गया तो रतेली जमीन का ध्यान क्यों नहीं दिया गया। फिर अब तो रेत वाली जगह क्या दरिया में बड़ी-बड़ी इमारतें बन रही हैं। अविभाजित मप्र के समय बांध बनाया गया उस समय के इंजीनियरों की अक्ल (या घूसखोरी?) के कारण ऐसा फूटा कि अब फूटहा नाम से मशहूर होकर जाने -पहचाने लगा है। गांव की जमीन से जुड़े पत्रकार चंद्रकांत पारगीर की एक रिपोर्ट और नासा की एक रिपोर्ट आप पढ़े। और सोचें आप क्या कर सकते हैं आने वाली पीढ़ी को एक गिलास ही सही, साफ पानी की विरासत देने के लिए।
कोरिया जिले के मनेन्द्रगढ़ तहसील अंतर्गत ग्राम बरबसपुर में महाराजपुर जलाशय योजना का बांध जो बनने के कुछ ही साल के बाद यह फूट गया इससे किसानों की 366 हेक्टेयर भूमि ंिसंचित होने से रह गयी। शासन ने तब के तत्कालीन जल संसाधन विभाग के सचिव सी के खेतान ने उक्त बांध को अत्याधिक रेतीला होने के कारण विलोपीत कर दिया है। ग्राम भर्रीडीह में ग्रामीण इसे फूटा तालाब के नाम से जानते है। ग्रामीण इसके फूट जाने और बाद में शासन द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं करने से नाराज है। बांध अब पूरी तरह झाडिय़ों से पटा पड़ा है। यहां के ग्रामीण अब इसका उपयोग बकरी गाय चराने के लिए करते है। दरअसल, ग्राम बसेर की तरफ से आने वाली कोईलापानी नामक नदी पर तब के अविभाजित मध्यप्रदेश के समय सन्ï 1976 में महाराजपुर लधु सिंचाई योजना की श्ुारूआत की गई जिसके तहत 9.98 लाख की लागत का बांध का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। बांध के बन जाने के बाद 1980 में बांध फूट गया। बांध के बनने से ग्राम हर्रा, दर्रीटोला,महाराजपुर और नागपुर के किसानों की 366 हेक्टेयर भूमि को सिंचाई का लाभ मिलने लगा था। इसका निर्माण के समय चौकीदार रहे 75 वर्षीय रामदास ने बताया कि वेस्टवेयर के गलत स्थान पर बन जाने से यह बांध टूट गया। उन्होने उक्त बांध में 12 वर्ष चौकीदारी की परन्तु उन्हें आज तक कोई वेतन नहीं मिला। उन्होंनेें बताया कि बरसात के मौसम में यहे बांध फूटा था, उस वक्त कोई जनहानि नहीं हुई थी। बालसाय नामक ग्रामीण का मकान बह बह गया था। बाद में इसकी मरम्मत का कार्य सनï्ï 1988 तक चला। ग्रामीणों का कहना है कि किसी प्रकार यह बांध शुरू हो जाता तो वे इससे खेती कर अपना विकास कर सकते थे।
नासा की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के जल भण्डार तेजी से सिकुड़ रहे हैं। शोध यह है कि पिछले एक दशक के दौरान समूचे उत्तर भारत में हर साल औसतन भूजल स्तर एक फुट नीचे गिरा है। इस शोध का चिंताजनक पहलू यह तो है कि भूजल स्तर गिरा है लेकिन उससे अधिक चिंताजनक पहलू यह है कि इसके लिए सामान्य मानवीय गतिविधियों को जिम्मेदार बताया जा रहा है। 13 अगस्त 2009 को प्रकाशित नेचर पत्रिका के एक रिपोर्ट के मुताबिक उपग्रह आधारित चित्रों से पता चला है कि भारत के जल स्रोत और भण्डार तेजी से सिकुड़ रहे हैं और जल्दी ही किसानों को परम्परागत सिंचाई के तरीके छोड़कर पानी की खपत कम रखने वाले आधुनिक तरीके और फ़सलें अपनानी होंगी। भारत में अस्थाई उपलब्धता भविष्य में खेती पर गम्भीर असर डालने वाली है और एक भीषण जल संकट की आहट सुनाई देने लगी है, परम्परागत फ़सलों और खेती के तरीके पर भी काली छाया मंडराने लगी है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों की उपग्रह तस्वीरें खींची और उसमें स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और देश की राजधानी दिल्ली में भूजल स्तर में भारी कमी आई है। ग्रेस और कोलोरेडो विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से संचालित किये गये एक अन्य शोध में बताया गया है कि उत्तरी भारत, पूर्वी पाकिस्तान और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में भूजल का स्तर 54 क्यूबिक किमी प्रतिवर्ष की दर से कम हो रहा है। शोध रपट आगे कहती है कि इस पूरे इलाके में जिस तरह से पानी का दोहन किया जा रहा है उससे यहां रहनेवाले 11 करोड़ 40 लाख लोगों के जीवन पर संकट गहरा होता जाएगा। ज्ञात हो कि उत्तर भारत में यही वो इलाके हैं जहां औद्योगिक और कृषि क्रांतियों का जन्म हुआ था। पंजाब और हरियाणा तो इस बात के जीते जागते उदाहरण बन गये हैं कि पिछले दौर में हरित क्रांति के नाम पर उन्होने जिस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया था उसका नतीजा अब उन्हें भुगतना पड़ रहा है। न केवल भूजल स्तर गिरा है बल्कि माटी और हवा भी बुरी तरह से प्रदूषित हुई है। दो दिन पहले ही भारत के पर्यावरण पर रिपोर्ट जारी करते हुए भारत सरकार ने स्वीकार किया है देश में 45 फीसदी जमीन बेकार और बंजर हो चुकी है।इस शोध का चिंताजनक पहलू यह तो है कि भूजल स्तर गिरा है लेकिन उससे अधिक चिंताजनक पहलू यह है कि इसके लिए सामान्य मानवीय गतिविधियों को जिम्मेदार बताया जा रहा है। नासा ने अपने अध्ययन में ग्रेस सेटेलाईट का सहारा लेकर कहा गया है कि इंसानों द्वारा लगातार भूजल दोहन का ही परिणाम है कि इस इलाके में भूजल चिंताजनक स्तर तक गिर गया है। लेकिन शोध औद्योगिक गतिविधियों और उन कृषि तकनीकों पर कोई सवाल नहीं खड़ा करता है जिसके कारण इस इलाके में हरित क्रांति के नाम पर भूजल का भयावह दोहन बढ़ा है। वैज्ञानिक रोडेल कहते हैं-यदि किसान अधिक पानी की खपत वाली फ़सलों, जैसे चावल को छोड़कर अन्य कम पानी की खपत वाली फ़सलों की तरफ़ ध्यान दें तो यह असरकारी हो सकता है। इस बीच खबरें आई हैं कि भारत सरकार एक कानून बनाकर भूजल के अत्यधिक दोहन के खिलाफ़ कार्रवाई करने जा रही है। रोडेल कहते हैं कि हमारे द्वारा किया गया अध्ययन और आँकड़े इस सम्बन्ध में भारत सरकार के लिये मददगार सिद्ध होंगे।

Monday, August 17, 2009

जंगलों में इल्लियां-बोरर-नक्सली-नेता

छत्तीसगढ़ के जंगलों में इन दिनों वन माफियाओं, इल्लियों और साल बोरर ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। बस्तर में जहां धीरे-धीरे छालों को काटकर पेड़ों को साफ कर दिया जा रहा है। वहीं मदनवाड़ा मानपुर के जंगल जहां सागौन के कीमती पेड़ हैं वहां इल्लियों ने अपना कब्जा शुरू कर दिया है। जो कोरिया के जंगल जहां साल हैं, वहां साल बोरर ने। यहां यह भी ध्यान रखने की बात है कि ये जंगल नक्सलियों की पनाहगार हैं। उन जंगलों में जहां ये फैले हुए होंगे जहां सरकारी अमला कभी पांव नहीं धरा होगा वहां की हालत क्या होगी। वैसे भी धीरे-धीरे प्रदेश में पेड़-जंगल और आदिवासी सिकुडऩे लगे हैं।
इन संपदाओं पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नजर लगी है। जब पेड़ ही नहीं बचेंगे तो जंगल कहां रह जाएगा, आदिवासी कहां बचेंगे, शायद तब नक्सली भी यहां नजर नहीं आएंगे। साल बोरर, इल्लियों से भी खतरनाक खादीकवचधारी सफेदपोश वैसे भी दिन दूने रात चौगुने देश-प्रदेश को धीरे-धीरे कुतर रहे हैं इल्लियों और बोरर की तरह। नक्सली तो खुले तौर पर हिंसा करना स्वीकारते हैं पर ये तो उनसे भी खतरनाक हैं जो रोज न जाने कितने का लहू चूस रहे हैं, जोंक की तरह। क्या होगा मेंरे छत्तीसगढ़ का....।

15 अगस्त को कांकेर के मलाजकुडुम जलप्रपात जाते हुए जब हमारी बस सड़क से गुजर रही थी तो पेड़ों की डालियां बस की छत को छूकर निकल रही थीं। ऐसा लग रहा था मानो हर पेड़ हमें आशिष दे रहा हो। बस्तर के ये जंगल शायद कुछ सालोंं बाद शायद आशिष देने के लिए भी न रहें। जल-जंगल-जमीन इन तीनों को खोकर क्या हम सब त्रिशंकु की तरह लटके नहीं रहेंगे? राजनांदगांव से दैनिक छत्तीसगढ़ के संवाददाता प्रदीप मेश्राम की रिपोर्ट के मुताबिक अपर्याप्त बारिश अब जंगल में मौजूद वृक्षों को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है। मौसम के कड़े तेवर से यहां के वृक्षों में संक्रामक रोग फैलने लगा है। पानाबरस जंगल से लेकर मानपुर के भीतरी हिस्सों में इल्लियों ने सागौन को अपना ग्रास बनाया है। इल्लियों का प्रकोप इस कदर बढऩे लगा है कि हरियाली के दिनों में जंगल में पतझड़ जैसे हालात हैं। वनमंडलाधिकारी श्री बिसेन के अनुसार इल्लियों के संक्रमण की जानकारी मिल रही है। लेकिन इससे ज्यादा नुकसान नहीं होता। ऐसे क्षेत्रों को चिन्हांकित कर इसे रोकने के उपाय किए जाएंगे। इस संबंध में स्थानीय दिग्विजय कॉलेज में पदस्थ जंतु शास्त्र की प्राध्यापक डॉ. श्रीमती अनिता महेश्वरी का मानना है कि इल्लियों के कहर से पौधों को पनपने में थोड़ी परेशानी हो सकती है परन्तु विशालकाय पेड़ों पर इनका प्रकोप बे-असर होता है। यद्यपि उन्होंने छोटे पौधों के लिये इसे काफी खतरनाक बताया। सागौन में लगे इल्लियों के प्रकोप को ग्रामीण अकला का संकेत भी मानते हैं। कनेरी गांव के सुरेन्द्र तुलावी का मानना है कि कभी-कभार ही ऐसा देखने को मिलता है। उनके पुरखे इसे अकाल का संकेत बताते आए हैं।

बैकुठपुर से दैनिक छत्तीसगढ़ के संवाददाता चंद्रकांत पारगीर की रिपोर्ट के अनुसार कोरिया जिले के जंगलों में इन दिनों साल बोरर तेजी से फैल रहा है। समय रहते रोकथाम नहीं किया गया तो भारी संख्या में साल पेड़ सूख जाएंगे। भरतपुर और सोनहत विकासखंड के जंगलों में साल बोरर का देखने को मिला। दीमक की तरह गुच्छे में ये कीड़े साल पेड़ों की तनों पर चिपक जाते हंै, और धीरे-धीरे पेड़ों के तनों में छेद करते जाते हैं जिसके कारण अंत में पेड़े सूख जाते हंै, और कमजोर होकर गिर भी जाते हंै। साल बोरर जेती से एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक फैलते जाते हैं। डिप्टी रेंजर बैकुण्ठपुर अखिलेश मिश्रा का कहना है कि साल बोरर पेड़ों की तनों को छेदकर तेजी से नुकसान पहुंचाता है। विभाग इसकी रोकथाम के लिए अभियान चलाएगा। इसके लिए विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है।इस संबंध में कृषि विज्ञानी और कीटों के जानकार पंकज अवधिया ने बताया कि साल बोरर कीट को एलास सोरडिडस जैसे बहुत से कीट खा जाते है। ऐसे मित्र कीटों की पहचान करके साल बोरर के प्रकोप पर अंकुश लगाया जा सकता है। बहुत से खरपतवार मित्र कीटों को नुकसान पहुँचाते है। ऐसे खरपतवारों को साल के वनों से हटाकर मित्र कीटों की मदद कर बोरर कीटों पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।

इन क्षेत्रों में यदि लेंटाना कैमारा नामक विदेशी खरपतवार जिसे स्थानीय भाषा में गोटीफूल या माछीमुडी भी कहा जाता है, का प्रकोप है तो इसे नष्ट करने की पहल की जानी चाहिए। बोरर कीटों को प्राकृतिक उपायों से नियंत्रित किया जाना चाहिए। जैव-विविधता से समृद्ध जंगल में रासायनिक विकल्पों से परहेज ही करना चाहिए।

डॉ
. निर्मल कुमार साहू