Saturday, September 12, 2009
बच्चे -1
Tuesday, August 25, 2009
झंडे-डंडे के बहाने
सांसद नवीन जिंदल के तिरंगेे को आम जनता के घरों पर फहराने के हक की जीत के बाद लोगों में राष्टï्रभावना बढ़ी है। अब तिरंगा घरों में भी लहराने को देखने को मिल रहा है। हालांकि अब इन्हीं नवीन जिंदल पर राष्टï्रध्वज के अपमान का अरोप लगना शुरू हो गया। उनके विज्ञापनों को लेकर कुछ संगठनों ने नाराजगी व्यक्त की, विरोध-प्रदर्शन किया।
अस्तु, महासमुंंद जिले के बसना ब्लॉक के बंसूला डीपा निवासी श्रीराम साहू अकेला गत दो सालों से हर पंद्रह अगस्त और 26 जनवरी को अपने अभिराम सदन में तिरंगा फहराते आ रहे हैं। पहले खुद तिरंगा फहराते थे पत्नी-बच्चों के साथ, उसके बाद स्कूल के लिए निकल पड़ते थे। इस बार उन्होंने अपने मित्र बद्रीप्रसाद पुरोहित के हाथों तिरंगा फहराया। ये वही बद्रीप्रसाद हैं जो पेशे से शिक्षक हैं, जिनकी कविता ने बसना में भूचाल ला दिया। उनकी स्कूल से खिंचकर पिटाई की गई, और उन्हें बहुत कुछ झेलना पड़ा। ये शिक्षक कवि वही हैं जिन्हें कभी कलेक्टर ने ईमानदारी का तमगा दिया था, अपनी बिरादरी में अपनी इस ईमानदारी के कारण न जाने कितनी बातें सुननी और झेलनी पड़ी थीं।
बहरहाल यह औरों को छोटी सी बात लगे पर जब देश के हर शहर, गांव, मुहल्ला, चौक-चौराहों पर अपने-अपने झंडों का कब्जाने का दौर शुरू हो गया है, यह अकेला प्रयास एक नई उम्मीद की किरण दिखाई देती है। अपने घर से ही शुरूवात करें, कि इस तिरंगे के आगे दूसरा रंग ऊपर नहीं हो सकता।
कुछ दिनों पहले मुझे बसना जाने का मौका मिला। यहां से गुजरते बसना के मुख्य चौक पर लगे लैंप पोस्ट पर झंडों के एक-दूसरे से आगे बढ़कर फहरने का होड़ दिखाई दिया। शायद, झंडे के डंडा का कद उतना जितना उस रंग के अनुयायी। खैर---लैंप पोस्ट से आगे निकलकर फहराने की जिद सबकी, पर डंडा तो आखिर किसी न किसी का छोटा होगा। बाकी उसे सलामी देते तो नजर आएंगे ही। इस चौराहे पर सबसे आगे निकलकर फहरने की होड़ हर रंग की थी पर चौराहे पर ही क्यों? मैंने पहली बार कई घरों के आगे खास रंग के झंडे फहरे देखे।
उधर लैंपपोस्ट पर जब एक खास रंग ने इन सबसे आगे फहरने की इच्छा जताई तो रंग न पहचान पाने के दृष्टिïदोष वाले स्थानीय प्रशासन ने तमाम रंगों वाले इन झंडों-डंडों को निकाला। आखिर उनकी नजर में सब एक ही तो हैं? चलो इसी बहाने कुछ अच्छा तो हुआ। श्रीरामजी का कहना है कि जब मंत्रियों, अफसरों, कारखानों, स्कूलों में तिरंगा फहराए जाने की खबरें छपती हैं तो क्यों उनके घर में फहरे इस झंडे को जगह नहीं मिलनी चाहिए? कम से कम उनका यह तिरंगा भी तो अखबारों के समाचारों में दो-चार लाइन पाने का हकदार है। शायद उनके तिरंगे में डंडा नहीं है, एक सांटी (छड़ी)के भरोसे है जो प्यार की हवा का हल्का सा झोंका पाकर विनम्रता से झुक जाता है, और लोग इसे डरकर झुक जाना कहते हैं।
श्रीरामजी की पीड़ा यह भी थी कि घर उनका, पर रंग जब उन्होंने अपनी पसंद का पुतवाया तो पड़ोसी समेत आसपास के लोग कहने लगे अरे यह तो फलां मजहब का रंग है और तुम तो...। तुमने यह रंग क्यों पुतवाया। कुछ जगह फुसफुसाहटें भी होतीं, जैसा कि आम भारतीय में देखने को मिलता है। पत्नी, बच्चे भी बातें सुनते तो वे मुझे ऐसे देखते जैसे मैं मुजरिम हूं। तब फैसला किया कि क्यों न तिरंगा का रंग पूरे घर को सराबोर करे।
अब लोग इस रंग पर क्या कहते हैं -मेरे सवाल पर कहते हैं कि अब मैं सबको राष्टï्रवादी दिखता हूं। कविता-कहानी लिखता हूं तो अब राष्टï्रवादी रचनाकार हो गया हूं। पेशे से शिक्षक हूं इसलिए देश भक्त गुरूजी बन गया हूं।
अब बात आकर अभिराम पर ठहर गई? यह नाम भी तो किसी खास रंगवालों का है तो उनका जवाब था- श्री राम और भाई साहब अभि का नाम मिलकर अभिराम है। नाम तो मेरा माता-पिता का दिया है, जिस पर मेरा बस नहीं था।वैसे झंडे-डंडे के इस दौर में थोड़ी सी सावधानी भी जरूरी है। जिस तेजी से नेता झंडे-डंडे बदल रहे हैं, जिस तरह से तेजी से डंडे बदल रहे हैंकब किस रंग की ओर है समझ में नहीं आता। जसवंत के झंडे से जिस तेजी से डंडा निकाला गया, बेचारे अब कहीं के नहीं रह गए हैं। शायद अब वे बेझंडों-बेडंडों वाले साथियों से मिलकर कुछ नई जुगत लगाएं। यह तो आने वाला समय बताएगा। पर इसी बहाने चलो झंडे और डंडे पर दो चार बातें हो गईं।
एड्स: खौफनाक तस्वीरें
एड्स ने जिस तरह से भारत में पांव फैलाना शुरू किया उससे एक बेदह खौेफनाक तस्वीर सामने आने लगी है। भारत जैसे बहुसंस्कृति व परंपरा वाले इस देश में इस बीमारी के कारण जो घटनाएं सामने आ रही हैं दिल को दहला देने वाली हैं। भारत मेंअशिक्षा और अंधविश्वास के कारण इस बीमारी से पीडि़त खासकर महिलाओं को हर स्तर पर झेलनी पड़ रही है। पुरूष प्रधान बारतीय समाज में आखिर वे ही दोषी ठहरा दी जाती हैं। भले ही भीमारी किसी और ने दिया हो। निजी जीवन तो मानो नर्क ही बन गया, तिल-तिल जीने को विवश, पर पढ़े लिखे डॉक्टर भी उनके साथ जो कुछ कर रहे हैं मानव की खत्म हो रही संवेदनशीलता की ओर इशारा करती हैं। देश-विदेश की कुछ घटनाओं पर आप नजर डालें, और सोचें क्यों ऐसा हो रहा है, कब तक होता रहेगा। क्या कहता है कोर्ट।
माथे पर एचआईवी पॉजिटिव लिख महिला की कराई परेड
गुजरात के जामनगर के सरकारी अस्पताल में एक प्रेग्नेंट महिला के माथे पर एचआईवी पॉजिटिव लिखकर परेड कराने का मामला सामने आया था। पीडि़ता का आरोप है कि डॉक्टरों ने उसका इलाज करने से भी मना कर दिया। जब इस घटना के खिलाफ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने गुरु गोविंद सिंह गवर्नमेंट हॉस्पिटल के सामने प्रदर्शन किया तो राज्य का स्वास्थ्य महकमा हरकत में आया। पीडि़ता के मुताबिक, घटना तब की है जब रुटीन चेकअप के लिए मेरा ब्लड टेस्ट किया गया। जब रिपोर्ट आई तो डॉक्टरों और स्टाफ के लोगों ने मेरे माथे पर एचआईवी पॉजिटिव का स्टिकर चिपकाकर अस्पताल में मेरी परेड कराई। डॉक्टरों ने मेरा इलाज करने तक से मना कर दिया।
इंदौर पुलिस को एड्स गर्ल की
तलाश इंदौर पुलिस इन दिनों एक ऐसी रहस्यमयी लड़की की तलाश में जुटी है जो कथित तौर पर एड्स से पीडि़त है, और नौजवानों के साथ शारीरिक संबंध बनाकर उन्हें इस खतरनाक बीमारी का शिकार बना रही है। एड्स गर्ल के रूप में दिनों दिन कुख्यात हो रही इस लड़की की पहचान के बारे में हालांकि पुलिस के पास पुख्ता जानकारी नहीं है, लेकिन लड़की के जाल में फंसे नौजवानों के बताए हुलिये के आधार पर उसका स्केच जारी कर दिया गया है। शहर के एसपी ने बताया कि हमें मीडिया के कुछ लोगों से मालूम पड़ा है कि शहर में एक एड्स पीडि़त लड़की रात के वक्त अनजान नौजवानों को सेक्स के लिए आमंत्रित करती है। यह लड़की नौजवानों को भी इस बीमारी का शिकार बनाने की कोशिश कर रही है। कई नौजवान इस लड़की का शिकार बन चुके हैं। गौरतलब है कि विदेशों में इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। कुछ वक्त पहले एक अनजान युवक ने यू ट्यूब पर एक विडियो के ज़रिए दावा किया था कि उसने 1500 से ज़्यादा लड़कियों के शरीर में एड्स का वायरस पहुंचा दिया है। इस विडियो में वह कुछ लड़कियों के नाम और उम्र पढ़ता भी नजऱ आया था। यह विडियो ज़बर्दस्त हिट रहा था।
एड्स पीडि़त छात्र को स्कूल से निकाला इलाहाबाद जिले के एक प्राथमिक विद्यालय में पढऩे वाले नौ साल के छात्र को प्रधानाचार्य ने यह कहकर विद्यालय परिसर से निकाल दिया कि वह एड्स पीडि़त है।जिले के जसरा इलाके में रहने वाले कक्षा चार के छात्र के साथ इस प्रताडऩा को शिक्षा विभाग ने गंभीरता से लेते हुए आरोपी प्रधानाचार्य के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। जिले के शिक्षा अधिकारी बृजेश मिश्रा ने बताया कि विभाग को पता चला कि जसरा क्षेत्र में बेलमोंडा प्राथमिक विद्यालय में शनिवार को प्रधानाचार्य ने एक छात्र को एड्स पीडि़त होने के कारण विद्यालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया। मिश्रा ने कहा कि हमें अभी यह पता नहीं चल पाया है कि प्रधानाचार्य को छात्र के एड्स पीडि़त होने की जानकारी कैसे हुई। घटना की जांच के आदेश दिये गये हैं।अधिकारियों के मुताबिक छात्र के माता-पिता सोरांव इलाके में रहते थे, उनकी एड्स की वजह से मौत हो गई थी। माता-पिता की मौत के बाद छात्र के मामा ने उसे अपने पास रख लिया और विद्यालय में उसका दाखिला करवाया।मिश्रा ने कहा कि वह आश्वस्त करते हैं कि विद्यालय प्रशासन की तरफ से छात्र को भविष्य में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा और आरोपी प्रधानाचार्य के खिलाफ जल्द ही सख्त कार्रवाई की जाएगी।
अफ्रीकी एड्स के इलाज के लिए करते हैं कुंवारियों से रेप
आज तक आपने अंधविश्वास के ढेरों किस्से सुने होंगे, लेकिन साउथ अफ्रीका में एड्स के रोगियों का मामला सबसे अलग है। यहां एचआईवी पॉजिटिव कई मरीजों का मानना है कि कमसिन वर्जिन लड़की के साथ सेक्स करने पर यह रोग ठीक हो जाता है। यह रोचक वाकया सुनाया है हॉलिवुड की मशहूर ऐक्ट्रिस शार्लीज़ थेरॉन ने। ऑस्कर अवॉर्ड जीत चुकीं थेरॉन यह देखकर काफी व्यथित थीं कि उनके देश के लोगों को इस बीमारी के बारे में सही जानकारी नहीं है। थेरॉन ने एड्स के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए सन् 1999 में केप टाउन में रेप क्राइसिसस सेंटर खोला था। उन्हें यह जानकर काफी धक्का लगा है कि 10 साल बाद भी लोग इस बीमारी को लेकर तरह - तरह की भ्रांतियों के शिकार हैं। उन्होंने कहा कि वहां काफी लोग एड्स के शिकार हैं लेकिन उन्हें यह नहीं पता है कि वे इस रोग के शिकार कैसे बने। थेरॉन कहती हैं कि अभी भी बहुत सारे लोग मानते हैं कि वर्जिन और कम उम्र की लड़की के साथ सेक्स करने से एड्स ठीक हो सकता है। इसकी वजह से वे टीनएजर के साथ रेप करते हैं और इस रोग को और फैलाते हैं।
शादी से पहले एड्स की जानकारी छुपाना चीटिंग नहीं: कोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक फैसले के तहत शादी से पहले पत्नी को एचआईवी एड्स की जानकारी नहीं दे पाने को जायज ठहराते हुए कहा है कि यह चीटिंग की श्रेणी में नहीं आता है। सतारा की एक महिला द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि यदि आप एचआईवी पॉजि़टिव हैं, तो शादी से पहले इसकी जानकारी अपनी होने वाली पत्नी को देना नैतिक स्तर पर सही हो सकता है। लेकिन, यदि किन्हीं कारणों से आप इस मसले की जानकारी अपनी भावी पत्नी को नहीं दे पाते तो इसे चीटिंग नहीं कहा जा सकता।
एचआईवी और एड्स क्या है? ज्यादातर लोग एचआईवी और एड्स को एक ही बीमारी मान लेते हैं। एचआईवी का अर्थ ह्यूयूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस है। इसमें संक्रमण धीरे धीरे बढ़ता चला जाता है। इसकी वजह से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। आगे चल कर यह एड्स यानी की एक्वायर्ड इम्यून डिफिशिएंसी सिंड्रोम में तब्दील हो जाता है। शुरू में इस बीमारी के बारे में पता नहीं चलता। लेकिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण हर बीमारी होने लगती है। तब जांच में इस बीमारी के बारे में पता चलता है।
कैसे फैलता है?
0 असुरक्षित यौन संबंधों से 0 संक्रमित इंजेक्शन या सूई के इस्तेमाल से 0 संक्रमित रक्त के प्रयोग से 0 संक्रमित गर्भवती माता से उसके गर्भस्थ शिशु को 0 संक्रमित व्यक्ति द्वारा किए गए अंगदान से
नहीं फैलता
0 संक्रमित व्यक्ति से बात करने पर 0 उसके साथ खाना खाने पर 0 उसके द्वारा प्रयोग किए गए बर्तन का प्रयोग करने पर 0 उसके साथ सोने से 0 उसे छूने या चूमने से
बचाव कैसे करें?
0 शारीरिक संबंध बनाते समय कंडोम का प्रयोग करें
0 दुर्घटना का शिकार होने पर इस बात का ध्यान रखा जाए कि चढ़ाया जाने वाला खून संक्रमित न हो
0 किसी भी डिस्पेंसरी या अस्पताल में टीका लगाने समय नई सूई का इस्तेमाल करें
0 अपने जीवन साथी के प्रति वफादार रहें
0 मल्टीपल सेक्सुअल पार्टनर न बनाएं
0 समलैंगिक संबंध न बनाएं
Sunday, August 23, 2009
राहुल गांधी : स्पीड 40 किलोमीटर
Wednesday, August 19, 2009
निरोध, कंडोम, फ्लेवर और खूबसूरती
Tuesday, August 18, 2009
पानी किस कीमत पर?
Monday, August 17, 2009
जंगलों में इल्लियां-बोरर-नक्सली-नेता
15 अगस्त को कांकेर के मलाजकुडुम जलप्रपात जाते हुए जब हमारी बस सड़क से गुजर रही थी तो पेड़ों की डालियां बस की छत को छूकर निकल रही थीं। ऐसा लग रहा था मानो हर पेड़ हमें आशिष दे रहा हो। बस्तर के ये जंगल शायद कुछ सालोंं बाद शायद आशिष देने के लिए भी न रहें। जल-जंगल-जमीन इन तीनों को खोकर क्या हम सब त्रिशंकु की तरह लटके नहीं रहेंगे? राजनांदगांव से दैनिक छत्तीसगढ़ के संवाददाता प्रदीप मेश्राम की रिपोर्ट के मुताबिक अपर्याप्त बारिश अब जंगल में मौजूद वृक्षों को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है। मौसम के कड़े तेवर से यहां के वृक्षों में संक्रामक रोग फैलने लगा है। पानाबरस जंगल से लेकर मानपुर के भीतरी हिस्सों में इल्लियों ने सागौन को अपना ग्रास बनाया है। इल्लियों का प्रकोप इस कदर बढऩे लगा है कि हरियाली के दिनों में जंगल में पतझड़ जैसे हालात हैं। वनमंडलाधिकारी श्री बिसेन के अनुसार इल्लियों के संक्रमण की जानकारी मिल रही है। लेकिन इससे ज्यादा नुकसान नहीं होता। ऐसे क्षेत्रों को चिन्हांकित कर इसे रोकने के उपाय किए जाएंगे। इस संबंध में स्थानीय दिग्विजय कॉलेज में पदस्थ जंतु शास्त्र की प्राध्यापक डॉ. श्रीमती अनिता महेश्वरी का मानना है कि इल्लियों के कहर से पौधों को पनपने में थोड़ी परेशानी हो सकती है परन्तु विशालकाय पेड़ों पर इनका प्रकोप बे-असर होता है। यद्यपि उन्होंने छोटे पौधों के लिये इसे काफी खतरनाक बताया। सागौन में लगे इल्लियों के प्रकोप को ग्रामीण अकला का संकेत भी मानते हैं। कनेरी गांव के सुरेन्द्र तुलावी का मानना है कि कभी-कभार ही ऐसा देखने को मिलता है। उनके पुरखे इसे अकाल का संकेत बताते आए हैं।
बैकुठपुर से दैनिक छत्तीसगढ़ के संवाददाता चंद्रकांत पारगीर की रिपोर्ट के अनुसार कोरिया जिले के जंगलों में इन दिनों साल बोरर तेजी से फैल रहा है। समय रहते रोकथाम नहीं किया गया तो भारी संख्या में साल पेड़ सूख जाएंगे। भरतपुर और सोनहत विकासखंड के जंगलों में साल बोरर का देखने को मिला। दीमक की तरह गुच्छे में ये कीड़े साल पेड़ों की तनों पर चिपक जाते हंै, और धीरे-धीरे पेड़ों के तनों में छेद करते जाते हैं जिसके कारण अंत में पेड़े सूख जाते हंै, और कमजोर होकर गिर भी जाते हंै। साल बोरर जेती से एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक फैलते जाते हैं। डिप्टी रेंजर बैकुण्ठपुर अखिलेश मिश्रा का कहना है कि साल बोरर पेड़ों की तनों को छेदकर तेजी से नुकसान पहुंचाता है। विभाग इसकी रोकथाम के लिए अभियान चलाएगा। इसके लिए विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है।इस संबंध में कृषि विज्ञानी और कीटों के जानकार पंकज अवधिया ने बताया कि साल बोरर कीट को एलास सोरडिडस जैसे बहुत से कीट खा जाते है। ऐसे मित्र कीटों की पहचान करके साल बोरर के प्रकोप पर अंकुश लगाया जा सकता है। बहुत से खरपतवार मित्र कीटों को नुकसान पहुँचाते है। ऐसे खरपतवारों को साल के वनों से हटाकर मित्र कीटों की मदद कर बोरर कीटों पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।
इन क्षेत्रों में यदि लेंटाना कैमारा नामक विदेशी खरपतवार जिसे स्थानीय भाषा में गोटीफूल या माछीमुडी भी कहा जाता है, का प्रकोप है तो इसे नष्ट करने की पहल की जानी चाहिए। बोरर कीटों को प्राकृतिक उपायों से नियंत्रित किया जाना चाहिए। जैव-विविधता से समृद्ध जंगल में रासायनिक विकल्पों से परहेज ही करना चाहिए।
डॉ