Saturday, October 11, 2008

जीवन

सुबह
जड़ दिए अधरों पर
फिर बासी प्यार
जीवन-समीकरण
में एक नया उधार

शाम
चाय में डूबोकर
प्याली भर मुस्कान
जीवन की देह को
मिल गया अनुदान

रात
मार फूंक ढिबरी को
दिया देह-ब्याज
ऋण दो आपस में
धन हुए आज

मास
प्यार की शर्त पर
नित नए अनुबंध
जीवन के राग में
जुड़ते गए छंद

साल
पड़ाव रहा बदलता
रास्ते जाने-पहचाने
सपन भी थक गए
ढूंढने लगे अफसाने

शून्य
जोड़-तोड़ गुणा-भाग
हिसाब पाप-पुण्य
हासिल बस अंत में
आया केवल शून्य

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