करील
करील का खट्टापन
उसे बेचती युवती से कम नहीं
तिस पर लावण्य का भार,
लपलपाती आंखे फारेस्टर की
कच्चा चबा जाने की
दु:साहसिकता लिए
भरे बाजार
बेखौफ घूमते
शाम की प्रतीक्षा में,
और शाम हुई एक हत्या
उस भ्रूण की तरह
जो बांस बनने से पहले
करील की शक्ल
में बाजार में थी।
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