तुम

9:31 AM, Posted by डा. निर्मल साहू, One Comment

शब्द में जैसे अर्थ हो तुम
गीतों में नाजुक बन्ध हो तुम
सरगम की इक-इक लय में
कविता हो कोई छंद हो तुम
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सुमन में सौंदर्य हो तुम
समीर में सौरभ हो तुम
सौन्दर्य में शचि हो तुम
पत्तियों में मुस्कराती शबनम हो तुम
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रूप हो तुम,रस हो तुम
गंध हो तुम, राग हो तुम
सांसों में जो नित-नित फिरता
प्राण बनी चेतना हो तुम
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सांसों की सरगम हो तुम
दिल की धड़कन हो तुम
पंचम स्वर में जो नित बोले
गीत वही संगीत हो तुम
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अधरों की तपन हो तुम
सीने की जलन हो तुम
इन्द्रधनुषी रंग लिए
बहकी -बहकी ख्वाब हो तुम
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रजनी की राका हो तुम
सूरज की रश्मि हो तुम
रिमझिम मीठी फुहार हो तुम
ठंड गुलाबी मधुमास हो तुम
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कली सी नाजुक हो तुम
कलगी की लचक हो तुम
हर शब्दों में आहट देती
कवि की चरम कल्पना हो तुम
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गरम हो तुम ,शीतल हो तुम
कोमल हो तुम , कठोर हो तुम
नरम हो तुम मंजुल हो तुम
प्रकृति की प्रतिकृति हो तुम
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मतवाले की मधुशाला हो तुम
जम पिलाती मधुबाला हो तुम
हर इक प्याले में छलकती
कड़वी-मीठी शराब हो तुम
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इच्छा हो, अभिलाषा हो तुम
जीवन की परिभाषा हो तुम
आसों में सांसे भारती
मन की सारी शक्ति हो तुम
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कलकल-छलछल सरिता हो तुम
पायल की रुनझुन मादकता हो तुम
मधुमय मंद झकोर हो तुम
स्वपन्मयी हिलोर हो तुम
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वामन का विपुल विस्तार हो तुम
विश्व का नवल श्रृंगार हो तुम
मौन होकर भी मुखर हो तुम
प्रथम स्पर्श प्यार हो तुम
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एक अधूरी मुस्कान हो तुम
रहस्यमयी वरदान हो तुम
प्रगतिमय सोपान हो तुम
भूत, भविष्य,वर्त्तमान हो तुम
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पल हो, प्रतिपल,अनुपल हो तुम
दिवस, रात्रि, संध्या प्रभात हो तुम
विजय स्वर प्रत्येक क्षणों में
इतिहास रचती युग गाथा हो तुम
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समीर का मृदुल मंद हास हो तुम
शरद का शशि विलास हो तुम
बसंत का परिहास हो तुम
परिवर्तनों में समाहित पूर्णता हो तुम
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चपल अबोध बचपन में तुम
ताप-तप्त उग्र यौवन में तुम
शांत गंभीर अन्तकाल में तुम
बद्ध होकर मुक्त हो तुम
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प्रबल झंझा पवन हो तुम
शांत विस्तारित गगन हो तुम
मन के सूने आंगन में
मधुमासी विश्वास हो तुम
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कच्ची फसल की गमक हो तुम
माटी की सोंधी महक हो तुम
संभावनाओं को समेटे
सृस्ती की चरम अव्भियक्ति हो तुम
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दुखितों का विश्वास हो तुम
प्यास में जैसे नीर हो तुम
पथ हो, पाथेय भी हो
मील का पत्थर संबल हो तुम
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श्रेय हो तुम,प्रेय हो तुम
शिक्षा हो तुम ,ज्ञान हो तुम
योगी की साधना हो तुम
सत्यं, शिवम्, सुन्दरम हो तुम
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तृष्णा हो तुम, तृप्ति हो तुम
उत्साह हो तुम, नैराश्य हो तुम
क्षितिज समेटे आँचल में
छलनामय बंधन हो तुम
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अमित युगों का संचित पुण्य हो तुम
शिव की कलिका शक्ति -पुंज हो तुम
प्रत्येक गृहों में रूप अन्नपुर्णा
दया, दृष्टि, क्षमा हो तुम
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सन्देश अमर गीता हो तुम
विश्वास प्रखर कुरान हो तुम
प्रेम अमित बाइबिल हो तुम
त्याग अपरिमित गुरुग्रंथ हो तुम
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पतित पाविनी गंगा हो तुम
सृजन्मयी मेधा हो तुम
उर्वर हो मरू भी तुम से
ऐसी अक्षय उर्जा हो तुम
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पूजा हो तुम,भक्ति हो तुम
श्रद्धा हो,समर्पण हो तुम
सफलता और सार्थकता में तुम
प्रार्थना के गीत हो तुम
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मां हो तुम, देवी हो तुम
प्रिय, प्रियतमा, पत्नी हो तुम
सखी,सहेली, बहन हो तुम
नाम नहीं,सर्वनाम हो तुम
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One Comment

khabar-express @ May 27, 2008 at 12:39 PM

'विविक्षा' आरंभ करने पर बधाई, गांधी बबा को याद किया यह भी सराहनीय है, आपका ब्‍लाग उत्‍तरोत्‍तर ख्‍याति प्राप्‍त करे शुभकामनाएं
रतन जैसवानी
जांजगीर