नदी

3:59 PM, Posted by डा. निर्मल साहू, One Comment

नदी

पकी हुई बालियों को देख
सूख रही
नदी ने किया महसूस
अब भी उफान
पूरे जोरों पर है
00
नहीं चाहती गंदला होना
यह तो नियति है उसकी
कि उठान से झलान तक
गुजरते
पथरीली चट्टानों से
टकराते
कट जाते हैं तटबंध
उफान भी तो
बरसन के घनत्व पर,
कब चाहा उसने
ढोए शवों को
बस रच दी गई
नंगी मर्यादा ढोने को
बना दी गई गंगा।
पर हां,
तभ भी गढ़ती है
नदी
एक नया द्वीप
बहती हुई,
ठहराव पर पवित्रता
स्वच्छता को देख
होते हैं तृप्त
अधर सूखे लिए
गंदला कौन?

One Comment

makrand @ October 23, 2008 at 4:16 PM

एक नया द्वीप
बहती हुई,
ठहराव पर पवित्रता
स्वच्छता को देख
होते हैं तृप्त
अधर सूखे लिए
गंदला कौन?