चिंतन

4:18 PM, Posted by डा. निर्मल साहू, 2 Comments


चिंतन

बीज ने छोड़ा केंचुल
तन गया बनकर अंकुर
मानो दीर्घतपी सा
एक पैरों पर खड़ा
जीवन और मृत्यु
पर
कर रहा चिंतन

2 Comments

Aadarsh Rathore @ October 23, 2008 at 5:24 PM

मान गए आपके विचारों के अभिव्यक्तिकरण की योग्यता को, अति उत्तम

Ritesh chaudhary @ February 13, 2011 at 4:47 PM

Bahut Khoob