कविता पर तनाव

4:47 PM, Posted by डा. निर्मल साहू, 4 Comments

दिन: 21 नवंबर 2008 # समय: 12 बजे दोपहर #  स्थान: बसना

छत्तीसगढ़ में शायद पहली बार किसी कवि की कविता पर तनाव की स्थिति पैदा हो गई। पेशे से शिक्षक कवि बद्रीप्रसाद पुरोहित की कविता सरायपाली के एक अखबार में छपी थी। बसना, सरायपाली और पिथौरा क्षेत्र तक सीमित अखबार छत्तीसगढ़ शब्द में आखिर ऐसा क्या था कि मुस्लिम समाज के कुछ युवकों ने उन्हें स्कूल से बाहर बुलाया और मारपीट की।
बकौल कवि के अनुसार उनका उद्देश्य किसी धर्म का अपमान नहीं था। यदि किसी को इससे ठेस पहुंचती है तो माफी मांगते हैं लेकिन यह समुदाय पुलिस में मामला दर्ज करने पर अड़ा रहा। आखिर मामला दर्ज किया गया। इसके बाद तो मामला सांम्प्रदायिक रंग लेने लगा। हिंदू सेना ने दूसरे पक्ष पर कार्रवाई न करने के पुलिस के रवैये पर बंद का आह्वान कर डाला। वे युवक जिन्होेंने मारपीट को अंजाम दिया था कि गिरफ्तारी की मांग करने अल्टीमेटम दिया। अल्टीमेटम से पहले युवकों को गिरफ्तार कर जमानत पर भी छोड़ दिया गया। अब मामला शांत हुआ। पुलिस ने दोनों पक्षों पर कार्रवाई की है।
यह तो हुई घटना और प्रशासनिक कार्रवाई। इस घटना के बाद एक प्रश्नचिह्न बना हुआ है कि आखिर कविता के स्वरूप पर फैसला कौन करेगा। क्या किसी कवि की भावनाओं पर नियंत्रण पहले से तय किया जाना चाहिए।
कविता का स्वरूप, शब्दरूप, शब्दार्थ, निहितार्थ और लक्षणार्थ कौन तय करेगा। क्या अदालत तय करेगी कि यह उचित अथवा अनुचित है।
जिस तरह रूप को देखकर किसी लड़की के चेहरे को देखकर सबसे पहले दुल्हन का आंकलन किया जाता है, गुण की अवहेलना की जाती है। ठीक उसी तरह क्या कविता का भी आंकलन किया जाए।
कविता की समझ लोगों को कितनी होती है और उक्त कविता को पढ़ने और समझने वालों का मापदंड क्या हो?
कविता वह हो जो आसानी से समझ में आ जाए, अन्य अर्थ या भ्रम की गुंजाइश कम से कम हो पर किसी कविता के लाखों अर्थ निकाले जा सकते हैं तब क्या होगा?
बद्रीप्रसाद पुरोहित की कविता जिससे मचा बवाल

क्या यह अल्लाह की ही मर्जी थी
कि वो सिरफिरे
अल्लाह के नाम पर भरे बाजार में
रख दें बम व उसके विस्फोट में
या अल्लाह की गुहार लगाते
सैकड़ों लोग हो जाएं हताहत
सचमुच यदि यही अल्लाह
की मर्जी थी
(लोग भी तो यही कहते हैं कि अल्लाह
की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता)
तो मुझे पूरी हिकारत और शिद्दत
के साथ अल्लाह के लिए
लानत भेजने दिया जाए।

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-डॉ. निर्मल कुमार साहू, रायपुर

4 Comments

मितान @ March 8, 2009 at 4:46 PM

जोहार ! स्वागत है

ajay saxena @ June 25, 2009 at 3:34 PM

डॉक्टर साहब ,नमस्कार ..बड़े साहस का काम किया कवी महोदय ने ..खरी-खरी बात जो कह डाली ..अभिनन्दन मेरी तरफ से ...

cg4bhadas.com @ August 15, 2009 at 9:58 AM

बहुत बढ़िया है

प्रज्ञा पांडेय @ September 10, 2009 at 8:06 AM

kavita men chhipa bhayankar vyangya nahi samalhe log