जंगलों में इल्लियां-बोरर-नक्सली-नेता

3:51 PM, Posted by डा. निर्मल साहू, 2 Comments

छत्तीसगढ़ के जंगलों में इन दिनों वन माफियाओं, इल्लियों और साल बोरर ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। बस्तर में जहां धीरे-धीरे छालों को काटकर पेड़ों को साफ कर दिया जा रहा है। वहीं मदनवाड़ा मानपुर के जंगल जहां सागौन के कीमती पेड़ हैं वहां इल्लियों ने अपना कब्जा शुरू कर दिया है। जो कोरिया के जंगल जहां साल हैं, वहां साल बोरर ने। यहां यह भी ध्यान रखने की बात है कि ये जंगल नक्सलियों की पनाहगार हैं। उन जंगलों में जहां ये फैले हुए होंगे जहां सरकारी अमला कभी पांव नहीं धरा होगा वहां की हालत क्या होगी। वैसे भी धीरे-धीरे प्रदेश में पेड़-जंगल और आदिवासी सिकुडऩे लगे हैं।
इन संपदाओं पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नजर लगी है। जब पेड़ ही नहीं बचेंगे तो जंगल कहां रह जाएगा, आदिवासी कहां बचेंगे, शायद तब नक्सली भी यहां नजर नहीं आएंगे। साल बोरर, इल्लियों से भी खतरनाक खादीकवचधारी सफेदपोश वैसे भी दिन दूने रात चौगुने देश-प्रदेश को धीरे-धीरे कुतर रहे हैं इल्लियों और बोरर की तरह। नक्सली तो खुले तौर पर हिंसा करना स्वीकारते हैं पर ये तो उनसे भी खतरनाक हैं जो रोज न जाने कितने का लहू चूस रहे हैं, जोंक की तरह। क्या होगा मेंरे छत्तीसगढ़ का....।

15 अगस्त को कांकेर के मलाजकुडुम जलप्रपात जाते हुए जब हमारी बस सड़क से गुजर रही थी तो पेड़ों की डालियां बस की छत को छूकर निकल रही थीं। ऐसा लग रहा था मानो हर पेड़ हमें आशिष दे रहा हो। बस्तर के ये जंगल शायद कुछ सालोंं बाद शायद आशिष देने के लिए भी न रहें। जल-जंगल-जमीन इन तीनों को खोकर क्या हम सब त्रिशंकु की तरह लटके नहीं रहेंगे? राजनांदगांव से दैनिक छत्तीसगढ़ के संवाददाता प्रदीप मेश्राम की रिपोर्ट के मुताबिक अपर्याप्त बारिश अब जंगल में मौजूद वृक्षों को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है। मौसम के कड़े तेवर से यहां के वृक्षों में संक्रामक रोग फैलने लगा है। पानाबरस जंगल से लेकर मानपुर के भीतरी हिस्सों में इल्लियों ने सागौन को अपना ग्रास बनाया है। इल्लियों का प्रकोप इस कदर बढऩे लगा है कि हरियाली के दिनों में जंगल में पतझड़ जैसे हालात हैं। वनमंडलाधिकारी श्री बिसेन के अनुसार इल्लियों के संक्रमण की जानकारी मिल रही है। लेकिन इससे ज्यादा नुकसान नहीं होता। ऐसे क्षेत्रों को चिन्हांकित कर इसे रोकने के उपाय किए जाएंगे। इस संबंध में स्थानीय दिग्विजय कॉलेज में पदस्थ जंतु शास्त्र की प्राध्यापक डॉ. श्रीमती अनिता महेश्वरी का मानना है कि इल्लियों के कहर से पौधों को पनपने में थोड़ी परेशानी हो सकती है परन्तु विशालकाय पेड़ों पर इनका प्रकोप बे-असर होता है। यद्यपि उन्होंने छोटे पौधों के लिये इसे काफी खतरनाक बताया। सागौन में लगे इल्लियों के प्रकोप को ग्रामीण अकला का संकेत भी मानते हैं। कनेरी गांव के सुरेन्द्र तुलावी का मानना है कि कभी-कभार ही ऐसा देखने को मिलता है। उनके पुरखे इसे अकाल का संकेत बताते आए हैं।

बैकुठपुर से दैनिक छत्तीसगढ़ के संवाददाता चंद्रकांत पारगीर की रिपोर्ट के अनुसार कोरिया जिले के जंगलों में इन दिनों साल बोरर तेजी से फैल रहा है। समय रहते रोकथाम नहीं किया गया तो भारी संख्या में साल पेड़ सूख जाएंगे। भरतपुर और सोनहत विकासखंड के जंगलों में साल बोरर का देखने को मिला। दीमक की तरह गुच्छे में ये कीड़े साल पेड़ों की तनों पर चिपक जाते हंै, और धीरे-धीरे पेड़ों के तनों में छेद करते जाते हैं जिसके कारण अंत में पेड़े सूख जाते हंै, और कमजोर होकर गिर भी जाते हंै। साल बोरर जेती से एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक फैलते जाते हैं। डिप्टी रेंजर बैकुण्ठपुर अखिलेश मिश्रा का कहना है कि साल बोरर पेड़ों की तनों को छेदकर तेजी से नुकसान पहुंचाता है। विभाग इसकी रोकथाम के लिए अभियान चलाएगा। इसके लिए विभाग के कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है।इस संबंध में कृषि विज्ञानी और कीटों के जानकार पंकज अवधिया ने बताया कि साल बोरर कीट को एलास सोरडिडस जैसे बहुत से कीट खा जाते है। ऐसे मित्र कीटों की पहचान करके साल बोरर के प्रकोप पर अंकुश लगाया जा सकता है। बहुत से खरपतवार मित्र कीटों को नुकसान पहुँचाते है। ऐसे खरपतवारों को साल के वनों से हटाकर मित्र कीटों की मदद कर बोरर कीटों पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।

इन क्षेत्रों में यदि लेंटाना कैमारा नामक विदेशी खरपतवार जिसे स्थानीय भाषा में गोटीफूल या माछीमुडी भी कहा जाता है, का प्रकोप है तो इसे नष्ट करने की पहल की जानी चाहिए। बोरर कीटों को प्राकृतिक उपायों से नियंत्रित किया जाना चाहिए। जैव-विविधता से समृद्ध जंगल में रासायनिक विकल्पों से परहेज ही करना चाहिए।

डॉ
. निर्मल कुमार साहू

2 Comments

Unknown @ August 17, 2009 at 6:59 PM

Shaandaar! Thank you also

Unknown @ August 17, 2009 at 6:59 PM

Shaandaar! Thank you also