ताज को देखकर

5:22 PM, Posted by डा. निर्मल साहू, No Comment


ताज को देखकर

मृत्यु
प्यार के ढाई आखर
के ही बराबर
डूबकर
जिसमें पाया जा सकता
सौंदर्य, शिव, सत्य
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उजली पांखों को
झटक, फेंक दी
हंस ने एक अदद
पंख
लगा जीवन को एक
नया पंख मिला
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संगमरमरी देह
संगमरमरी कब्र
संगमरमरी प्रेम
संगमरमरी याद
इतिहास के पन्ने
कब तक भरेंगे
कब तक रचेंगे
अपना ताजमहल
शायद
नूरजहां और शाहजहां
जब तक हृदय में हों,
मौत कब हुई इनकी
लगत है ताज का
हर कोना
प्रेम में एक नया
जीवन उंडेल देता हो
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यमुना नहीं मरी अब भी
राधा-कृष्ण भी
प्रेम की नदी जब तक
हृदय में बहती रहेगी
हर पात्र रहेगा
जिंदा
मौत भी आंसू बहाती है
तब खुशी से
जीतकर भी जिसे
जीत न पाया

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प्रेम करने वाले
ढूंढते नहीं सुबह
अभिसार के चिह्न
जिस दिन
पा लेते हैं
ललाई आंखों में
अभिसार के लक्षण
मौत होती है उनकी
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